मोहब्बत बयां करतीं अमृता प्रीतम की कविताएं

एक गहरी शाम थी  वह रेत के टीले पर बैठी  अँधेरे का तागा  उँगलियों पर लपेटती रही…

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आज हमने एक दुनिया बेची और एक दीन खरीद लिया हमने कुफ़्र की बात की

आज वारिस शाह से कहती हूं अपनी क़ब्र में से बोलो  और इश्क की किताब का कोई नया वर्क़ा खोलो

आओ लम्हों के सर पर एक छप्पर डालें  वो देखो दूर वहां  सच और झूठ के दरमियान कुछ जगह ख़ाली है

अगर मुझे ढूंढना चाहो  तो हर मुल्क के हर शहर की गली का  दरवाज़ा खटखटाओ

यह जो एक घड़ी हमने मौत से उधार ली है गीतों से इसका दाम चुका देंगे

सूरज ने आज मेहंदी घोली हथेलियों पर रंग गई, हमारी दोनों की तकदीरें

मेरे इस जिस्म में तेरा साँस चलता रहा धरती गवाही देगी धुआं निकलता रहा

धरती का दिल धड़क रहा है सुना है आज टहनियों के घर फूल मेहमान हुए हैं