क्या होते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड, फिर क्यों हैं चर्चा में?

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़ा ही अहम फैसला सुनाया है

 जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड के सूचना के अधिकार का उल्लंघन कर दिया साथ ही अदालत ने इस स्कीम को रद्द भी कर दिया

कोर्ट ने कहा कि ये स्कीम संविधान में दिए गए सूचना के अधिकार और बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का उल्लंघन करती है

चीफ जस्टिस ने कहा कि ये संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है

सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर में कहा था कि इस तरह के बॉन्ड का "मनी लॉन्ड्रिंग के लिए दुरुपयोग" किया जा सकता है

चुनावी बॉन्ड स्कीम को केंद्र सरकार ने दो जनवरी 2018 को लागू किया था. इसके जरिए कोई भी नागरिक अपनी पसंद की पार्टी को दान दे सकता है

किसी पार्टी को 1000 रुपए का चंदा देना है, तो आप SBI से 1000 रुपए का चुनावी बॉन्ड खरीद सकते हैं. 1 करोड़ रुपए तक के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं

इन बॉन्ड को कोई एक शख्स, ग्रुप या कॉपरिट संगठन भी खरीद सकता है और अपनी पसंद के राजनीतिक दल को दान किया जा सकता है

चुनावी बांड का इस्तेमाल करने वाले दानकर्ता की पहचान तकनीकी रूप से गुमनाम होती है, लेकिन SBI बैंक के पास इसके डेटा का एक्सेस होता है 

इसके अलावा, 2017 में, RBI बैंक ने भी मोदी सरकार को आगाह किया गया था कि कंपनियां 'मनी लॉन्ड्रिंग' के लिए इन बॉन्ड का दुरुपयोग कर सकती हैं